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कस्परचे वजने लगी झालरों और शंखों की ध्वनि होने लगी। लाखों मृदंग आदि वाद्य बजने इन्द्रादि
देवैः कृत मान्दार्थ लगे। वीणा आदि तत, पटह आदि वितत, कांसे के ताल आदि धन और पांसुरी १६६॥ १६॥ | आदि शुपिर, इस प्रकार के वाय बज उठे। कहा भी हैं
महोत्सपः 'ततं वीणादिकं ज्ञेयं विततं पटहादिकम् ।
___घनं तु कांस्यतालादि, वंशादि शुषिरं मतम् ॥१॥इति॥ । वीणा आदि को तत, पटह (ढोल) आदि को वितत, कांसे के ताल आदि को घन ।
और बांसुरी आदि को शुषिर माना गया है ॥१॥ ____ उत्तम-उत्तम सैकडों नर्तकनाट्य करने लगे। समस्त बाजों के शब्दों की ध्वनि .. से, महान् शब्दों से, महती सम्पत्ति से, महती विभूति से तथा महान् हार्दिक उल्लास से सभी ने तीर्थंकर का महान् दीक्षामहोत्सव करना आरंभ किया। वह इस प्रकारशक देवेन्द्र देवराज ने शिविका (पालकी) की विकुर्वणा की, अर्थात् वैक्रियशक्ति से ॥१६६॥