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IN रत्नों से जडे हुए दंडवाले चामर भगवान पर वीजने लगे। [तए णं तं सिवियं पुव्वं AT इन्द्रादिसशब्दार्थे
देवः कृत - पुलइयरोमकूवा हरिसवसविसप्पमाणहियया] उस शिबिका को पहले तो पुलकितरोम॥१६५|
निष्क्रमण कूपवाले और हर्ष से विकसित हृदयवाले [मणुस्सा उव्वहंति] मनुष्य वहन करते हैं
नहोत्सवः [पच्छा सुरिंदा असुरिंदणागिंदा सुवर्णिणदा य उव्वहंति] उसके बाद सुरेन्द्र असुरेन्द्र, नागेन्द्र ओर सुपर्णेन्द्र वहन करने लगे [तत्थ णं तं सिबियं पुवदिसाए सुरिंदा, दाहि|णाए दिसाए नागिंदा, पच्छिमदिसाए असुरकुमारिंदा उत्तरदिसाए सुवण्णकुमारिंदा उव्वहंति] उनमें से शिबिका के पूर्व दिशा के भाग को सुरेन्द्र दक्षिण दिशा के भाग
को नागेन्द्र पश्चिम दिशा के भाग को असुरकुमारेन्द्र एवं उत्तर दिशा के भाग को | सुपर्णकुमारेन्द्र वहन करते हैं ॥३९॥,
अर्थ-देवों के आने के पश्चात् उन चौसठ इन्द्रों ने, देवों ने और देवियों ने भगवान् | महावीर का दीक्षा महोत्सव मनाना आरंभ किया। बडे बडे ढोल बजने लगे भेरियों
॥१६५॥