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________________ कल्पसूत्रे ऐसी तथा [मज्झट्रियसपायपीठसीहासणं] जिस के मध्य में पादपीठ से युक्त सिंहासन इन्द्रादि-: देवैः कृत पशब्दार्थे । रचा गया है ऐसी [एग महं पुरिससहस्तवाहिणि चंदप्पहं सिबियं विउव्वइ] एक बडी निष्क्रमण १६४॥ हजारपुरुष वाहिणी चन्द्रप्रभा नामकी शिबिका की विकुर्वणा की [विउव्वित्ता] विकु- महोत्सवः ॐणा करके [जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता] जहां श्रमण || : भगवान महावीर थे वहीं शक्र आये। आकर [समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो, आयाहिणपयाहिणं करेइ, करित्ता] तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणपूर्वक श्रमण भगवान् महा वीर को [वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता] वन्दना की नमस्कार किया, वन्दना नमस्कार । 1: करके [परिहियबहुमुल्लाभरणखोमयवत्थं भयवं तित्थयरं सिबियाए निसियावेइ] बहुमूल्य । ANS आभरण और क्षोमवस्त्र धारण किये हुए भगवान तीर्थंकर को शिबिका में बिठलाये। ...". [तए णं सकीसाणा दो वि इंदा दोहिं पासेहिं मणिरयणखइयदंडाहि चामराहिं भयवं वीयंति] तब शकेन्द्र और ईशान दोनों इन्द्र दोनों बगलों में खडे होकर मणियों और ॥ ६४॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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