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कल्पसत्रे समन्दार्थे
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शब्दार्थ-तओणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अभिनिक्खमणनिच्छयं जाणेत्ता] litil अभि
निष्क्रमणतब श्रमण भगवान महावीर के अभिनिष्क्रमण का निश्चय जानकर [सक्कप्पमुहा चउ
महोत्सवे सट्री वि इंदा भवणवइ वाणमंतरजोइसिय-विमाणवासिणो देवा य] शक आदि चौसठ इन्द्रादि
देवागमनम् इन्द्र, भवनपति, व्यंतर ज्योतिष्कविमानवासी देव देवियां [सएहिं सएहिं परिवारहिं परिवुडा सईयाहिं सईयाहिं इड्ढीहि समागया] अपने अपने परिवारों सहित और अपनी
अपनी ऋद्धि के साथ आये [तं समयं जहा कुसुमियं वणसंडं सरयकाले जहा पउमसरो] | उस समय आकाश सुरगणों से ऐसा सुशोभित हुआ, जैसे शरऋतु में पद्मसरोवर कमलों से | | शोभायमान होता है [पउमभरेणं जहा वा सिद्धत्थवणं,कणियारवणं चंपयवणं कुसुमभरेणं सोहइ तहा गगणतलं सुरगणेहिं सोहइ] अथवा जैसे सिद्धार्थवन, कर्णिकावन एवं चंपकवन कुसुमों के भार से शोभायमान होता है ऐसा ही आकाश, देवगणों से शोभने लगा ॥३८॥ . . अर्थ-तब श्रमण भगवान महावीर के दीक्षा अंगीकार करने के निश्चय को जानकर
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