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समन्दार्थे के
अभि... निष्क्रमण
महोत्सवे 10 इन्द्रादि
देवागमनम्
कल्पसूत्रे । पहले से आरंभ करके एक प्रहर-पर्यन्त एक करोड आठ लाख सुवर्ण मुद्राएँ प्रतिदिन
देते थे। इस प्रकार सबका जोड करने से एक वर्ष में तीन अरब, अठासी करोड, अस्सी ॥१५८॥
लाख स्वर्णमुद्राएँ दी। तत्पश्चात् नन्दिवर्धन राजा ने भगवान् श्री महावीर की दीक्षा महोत्सव का प्रारंभ किया ॥३७॥
मूलम्-तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अभिनिक्खमणनिच्छयं जाणेत्ता सक्कप्पमुहा चउसट्ठी वि इंदा भवणवइ वाणमंतर जोइसिय विमाणवासिणो देवा य देवीओ य सरहिं सरहिं परिवारेहिं परिखुडा सईयाहिं सईयाहिं
इड्ढीहि समागया। तं समयं जहा कुसुमियं वणसंडे, सरयकाले जहा पउम- सरो पउमभरेणं जहा वा सिद्धत्थवणं कण्णियारवणं, चंपयवणं कुसुमभरेणं
सोहइ तहा गगणतलं सुरगणहिं सोहइ ॥३८॥
॥१५८॥