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अभिनिष्क्रमणः महोत्सवे इन्द्रादिदेवागमनम्
कल्पसूत्रे ( शक्र आदि चौसठ इन्द्र भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिषिक, विमानवासी देव तथा देवियां पसन्दार्थे
अपने अपने परिवारों से युक्त तथा अपनी-अपनी विमान आदि विभूति के साथ आये। ॥१६०॥
उस समय जैसे पुष्पित वनषंड तथा शरदऋतु में कमलयुक्त सरोवर अथवा सरसों का }! वन, कनेर का वन एवं चम्पा का वन पुष्पों के समूह से शोभित होता है उसी प्रकार आकाशमंडल सुरसमूहों से शोभायमान हुआ ॥३८॥
मूलम्-तए णं ते चउसट्ठि वि इंदा देवा य देवीओ य वरपडहभेरिझल्लरिसंखेहि सयसहस्सेहिं तूरेहिं तयवितयघणझुसिरेहिं चउविहेहिं आउज्जेहि य ॥ वज्जमाणेहिं आणट्टगसएहिं णट्टिज्जमाणेहिं सव्व दिव्वतुडियसद्दनिनाएणं महया
रवेणं महइए विभूईए महया यहिययोल्लासेणं महं तित्थयरनिक्खमणमहं करिउमारभिंसु तं जहा-सक्के देविंदे देवराया करितुरगाइ णाणाविह चित्तचित्तियं हारद्ध
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॥१६०