________________
भगवतः संवत्सरदानपूर्वक निष्क्रमण वर्णनम्
कल्पसूत्रे ( क्या देवें [किं पयच्छामो] क्या अर्पित करे किंवा ते हियइच्छिए सामत्थे] आपके हृदय शब्दार्थ में क्या प्रिय है ? [तएणं भगवं एवं वयासी] तब भगवान ने ऐसा कहा [इच्छमि णं १५६॥
भाया] हे भ्रात मैं इच्छता हूं [कुत्तियावणाओ] कुत्तियावण की दुकान से [रयहरणं पडिग्गहणं च उवणेह] रजोहरण एवं पात्रादि लाकर मुझे दे [कासवं च सदावेह] एवं नाइको भी बुलावो [तए णं से नंदिवद्धणे राया भगवओ अभिनिक्खमणमहोच्छवं करेइ] उसके बाद नन्दिवर्द्धन राजा ने भगवान का अभिनिष्क्रमण महोत्सव किया ॥३७॥ ___अर्थ-'तेणं कालेणं' इत्यादि । उस काल और उस समय में अर्थात् प्रथम वर्ष बीत जाने पर और दूसरा वर्ष प्रारंभ होने पर सपरिवार लोकान्तिक देवों के आसन चलायमान हुए। आसनों के चलायमान होने के अनन्तर लोकान्तिक देव भगवान की प्रव्रज्या की इच्छा को अवधिज्ञान से जानकर भगवान के समीप उपस्थित हुए। आकाश में स्थित होकर भगवान् वीर प्रभु को वन्दना-नमस्कार करते हुए वे इस प्रकार वोले
॥१५६॥