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________________ कल्पसूत्रे ॥१५५॥ 9000900103005 करोड आठ लाख स्वर्णमुद्राएँ एक दिन में दान देते थे [एवं एगम्मि संवच्छरे तिष्णि कोडीयाई अट्ठासी कोडिओ असीइ सयसहस्साइं सुवण्णमुद्दाणं भगवया दिण्णाई] इस प्रकार एक वर्ष में, तीन सौ अठासी करोड, अस्सीलाख सुवर्ण मुद्राओं का भगवान ने दान दिया [एणं] तत्पश्चात् [ से मंदिवडणे राया ] वह नंदिवर्धन राजा [भगवं ses] भगवान् को प्रार्थना करके कहने लगे [भ] आप [एगदिवसमेत्तं ] एक दिवस भी [ज्जं करीअ] राज्य करके [तओ पच्छा] उसके पीछे [णिक्खमणं करेइ] निष्क्रमण करना योग्य है [तं सच्चा] नंदिवर्धन राजा का इस वचन को सुनकर [भगवं] भगवान [मणभावमवलम्बचिइ ] मौन रहे [तओ पच्छा ] भगवान को मौन देखकर नंदि -- वर्धन [भगवं राजाभिसरण ] बडे समारोह के साथ भगवान का राज्याभिषेक करके [ रज्जे ठावेइ] राज्य में स्थापित किया [तओ] तत्पश्चात् [णंदिवडूंढणे राया ] नंदिवर्धन राजा [भगवं पुच्छि ] भगवान को पूछने लगे [भाया कि दलयामो] हे भाई आपको OCCCCCCCOE भगवत: संवत्सरदानपूर्वक निष्क्रमण वर्णनम् ॥। १५५।।
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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