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.. करपात्रे .. सपन्दायें
तीर्थकराभिषेक| निरूपणम्
मूलम्-जं रयणिं च णं तिसला खत्तियाणी दारगं पसूया, तं रयणिं च णं | भवणवइवाणमंतरजोइसियविमाणवासिदेवेहि य देवीहिं य उवयंतेहिं य एगं महं दिव्वे देवुज्जोए देवसण्णिवाए देवकहक्कहे उपि जलगभूए यावि होत्था।
अह य देवा य देवीओ य एगं महं अमयवासं च गंधवासं च चुण्णवासं च पुप्फवासं च हिरण्णवासं च रयणवासं च वासिंसु ॥२॥
भावार्थ-जिस रात्रि में त्रिशला क्षत्रियाणी ने पुत्र को जन्म दिया उस रात्रि में भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों और देवियों का भगवान् के समीप आते और ऊपर जाते समय एक महान् दिव्य देव-प्रकाश हुआ, देवों का आपस में मिलन हुआ, देवों का 'कल-कल' शब्द हुआ-अस्फुट सामूहिक शोर हुआ, तथा | देवों की अत्यन्त भीड हुई।
॥५॥