________________
कल्पसूत्रे करनेके लिए ही चला हो । देवों ने पांच वर्षों के पुष्पों की वर्षा की, वस्त्रों की वर्षा की। तीर्थकरासशब्दार्थे ।
भिषेक"अहो जन्म, अहो जन्म' का आकाश में घोष हुआ। उद्यान असमय में ही सब तुओं ॥४॥
के फलों के भंडार बन गये। वावडी, कूप, तालाब आदि जलाशयों का जल विमल हो ॥ गया। जेसे वायु के वेग से तालाब का जल चंचल हो उठता है, उसी प्रकार जनपद की जनता के मन हर्ष के प्रकर्ष से चंचल हो उठे। जंगली जानवर जन्मजात वैर को त्याग कर एक साथ आहार और विहार करने लगे। नभमण्डल मेघों की घटाओं से । विहीन, विमल और विमानों की चमक से चमकने लगा। साल रसाल (आम्र) तथा तमाल आदि वृक्षों की चोटियों पर चढे हुए कोकिल आदि पक्षी आम की रसीली
मंजरियों के रसास्वादन से जनित आनन्द से पंचम स्वर में बोलने लगे और अनन्त ॥ गुणगण के धाम भगवान् के ललाम यश का गान करनेवाले सूत, मागध और चारणों
को भी मात करते हुए कूजने लगे। ये सब विषय अन्तर्मुहूर्त तक रहा ॥१॥
Shiटाhिd.INZERSAMS
॥४॥