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कल्पसूत्रे मशब्दार्थ
तीर्थंकराभिषेक निरूपणम्
॥३॥
चारणविडंबिणो महुरं परं कूइउ मारभित्था ॥मू० १॥
भावार्थ-जिस समय त्रिशला क्षत्रियाणी ने पुत्र को जन्म दिया उस समय दिव्य HI उद्योत से तीनों लोक प्रकाशित हो गये। आकाश में देवदुंदुभियां वजने लगी। अन्त
मुहूर्त के लिए नरक के जीवों की भी दस प्रकार की क्षेत्र वेदनाएं शान्त हो गई।
.... दश प्रकार की क्षेत्रवेदना-१ अनन्तशीत, २ अनन्तउष्ण, ३ अनन्तभूख, ४ अनFill न्तप्यास, ५ अनन्तखुजली, ६ अनन्तपराधीनता, ७ अनन्तभय, ८ अनन्तशोक, ९ अनन्तजरा, १० अनन्तव्याधि
उन्होंने आपस का वैर त्याग दिया। मेघों के अभाव में भी, चन्दन की गन्ध से युक्त, सुन्दर कमलों से युक्त वर्षा हुई। सोने की प्रचुर वर्षा हुई। सुखद स्पर्शवाला, मनोहर, अनुकूल, मलयज चन्दन और कमल के समान शीतल, सुगंध से आनन्द देनेवाला मन्दमन्द पवन चलने लगा, मानो बाल्य अवस्था में स्थित भगवान् का स्पर्श
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