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कल्पसूत्रे
तीर्थकराभिषेकनिरूपणम्
सशब्दार्थे
इस के पश्चात् देवों और देवियों ने एक बहुत बड़ी अमृतवर्षा की सुगंधजल की वर्षा की, पुष्पों की वर्षा की, सोनेचांदी की वर्षा की और रत्नों की वर्षा की ॥२॥ ___ मूलम्-भगवंतो तित्थयरा समुप्पज्जत, तेणं कालेणं तेणं समएणं अहोलोगवत्थव्वाओ अढदिसाकुमारी महत्तरियाओ सएहिं २ भवणेहिं पासायवडिंसएहिं पत्तेयं २ चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं चउहि महत्तरियाहिं सपरिवाराहिं सत्तहिं अणियाहिं सत्तहिं अणियाहिवईहिं सोलसाहें आयरक्खदेव साहस्सीहिं अण्णेहि य बहुहिं भवणवईवाणमंतरेहिं देवेहिं देवीहिं य सद्धिं संपखुिडाओ महयाहयणट्टगीयवाइय जाव भोगभोगाइं भुंजमाणीओ विहरंति तं जहा भोगंकरा भोगवई सुभोगा भोगमालिणी तोयधारा विचित्ता य पुप्फमाला अणिंदिया तए णं तासिं अहोलोअवत्थव्वाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारी महत्तरियाण
॥६॥