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भगवतो विवादः स्वजनवर्णनं च
कल्पयो ! पार किया हुआ, एवं परिपक्क-विज्ञानवाला, दो कान, दो आंख, दो नाक, रसना, त्वचा सभन्दाथै है और मन-यह नौ अंग जो सुप्त थे, उन्हें यौवन के कारण जागृत हुआ देखकर, माता१५०॥
" पिताने अयोध्या के राजा समरवीर की पुत्री और धारिणी नाम देवी की अंगजात । यशोदा नामक श्रेष्ठ राजकन्या के साथ उसका विवाह कराया। विवाह के बाद काल* क्रम से श्रमण भगवान् महावीर को 'प्रियदर्शना' नामक एक कन्या की प्राप्ति हुई। 1 प्रियदर्शना धीरे धीरे यौवन अवस्था में पहुंची तो भगवान् ने उसे अपने भागिनेय । जमालि को दी-जमालि के साथ उसका विवाह कर दिया। प्रियदर्शना की भी कन्या , शेषवती नामक हुई। श्रमण भगवान महावीर के पिता के, जो काश्यपगोत्र में उत्पन्न
हुए थे, तीन नाम थे-सिद्धार्थ, श्रेयांस, और यशस्वी। वाशिष्ठ गोत्र में उत्पन्न माता के तीन नाम थे-त्रिशला, विदेहदत्ता और प्रियकारिणी। - भगवान के काका काश्यपगोत्रोत्पन्न 'सुपार्श्व' थे। बडे भ्राता काश्यपगोत्रोत्पन्न
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