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________________ भगवतो कल्पसूत्रे सशन्दायें A स्वजन जसवईति वा दो नामधिज्जा होत्था] उनकी दौहित्री [नातिन] कौशिक गोत्र की थी। विवाहा उसके दो नाम थे-शेषवती और यशस्वती। वर्णनं च [समणस्स भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो] श्रमण भगवान महावीर के माता पिता [पासावच्चिज्जा समणोवासगा यावि होत्था] पार्थापत्यीय (पार्श्वनाथ के अनुयायी) श्रमणोपासक थे [तेणं बहूणं समणोवासगपरियागं पाउणित्ता] वे दोनों बहुत वर्षोंतक | श्रमणोपासक-श्रावकवत को पालकर [अपच्छिमाए संलेहणाए झोसणाए झोसियसरीरा] अन्तिम समय में होनेवाली मारणांतिक संलेखना-जोषणा से शरीर को जोषित करके l [कालमासे कालं किच्चा बारसमे अच्चुए कप्पे] मृत्यु के अवसर पर काल करके बारहवे अच्युत नामक देवलोक में [देवत्ताए उववण्णा] देवरूप से उत्पन्न हुए। [तओ णं महाविदेहे सिज्झिस्संति] वहां से चवकर वे महाविदेह में सिद्ध होंगे ॥३६॥ अर्थ-तए णं' इत्यादि । तदनन्तर श्रमण भगवान् महावीर ने बाल्यवय को ॥१४९॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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