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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥१५१॥ भगवत संवत्सरदानपूर्वक निष्क्रमण वर्णनम् नन्दिवर्धन थे। बडी बहिन काश्यपगोत्रीया सुदर्शना थी। पत्नी का नाम यशोदा था, वह कौडिन्य-गोत्र में उत्पन्न हुई थी। उनकी कन्या काश्यपगोत्रीया के दो नाम थे प्रियदर्शना और अनवद्या । कौशिकगोत्र में उत्पन्न नातिक के दो नाम थे शेषवती और यशस्वती। भगवान के मातापिता भगवान् पार्श्वनाथ की शिष्यपरम्परा से संबंध रखने वाले श्रावक थे। वे बहुत वर्षोंतक श्रमणोपासकपर्याय पालकर सब से अन्त में, मरण के समय में होने वाली संलेखना-जोषणा से शरीर को जोषित करके [समाधि-मरण का सेवन करके] कालमास में काल करके बारहवें अच्युत-नामक कल्प में देवपर्याय से उत्पन्न हुए। वहां से च्यवकर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होंगे और मुक्ति प्राप्त करेंगे ॥३६॥ ... मूलम्-तेणं कालेणं तेणं समएणं लोगंतियदेवाणं सपरिवाराणं आसणाई चलंति । तए णं ते देवा भगवओ निक्खमणाभिप्पायं ओहिणा आभोगिय 9 भगवओ अंतिए आगमिय आगासे ठिच्चा भयवं वंदमाणा नमसमाणा एवं ॥१५॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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