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भगवतः कलाचार्यसमीपे प्रस्थानादि वर्णनम्
- कल्पसूत्रे है महापुरुषों के गुण चित्त में चमत्कार उत्पन्न करने वाले होते ही हैं। इस बालक की सशब्दार्थे । गंभीरता कैसी है कि चमत्कारिक गुणों के समूह से सम्पन्न होने पर भी यह मेरे पास ॥१४३॥
al शिक्षा ग्रहण करने के लिए चला आया! यह ठीक ही कहा जाता है कि, आधा भरा
हुआ घडा ही आवाज करता है पूरा भरा नहीं, दुर्बल जन ही चिल्लाते हैं शूर नहीं, कांसा बजता है, किन्तु स्वर्ण नहीं बजता । इसी प्रकार महापुरुष अपनी महिमा को | प्रकाशित नहीं करते!
तत्पश्चात् शक्र देवेन्द्र देवराज ने अपने इन्द्र रूप को प्रकट करके समस्त गुणों के समुद्र भगवान् महावीर के अतुल बल, वीर्य, बुद्धि और प्रभुता का वहां स्थित जनों को परिचय कराया कि-यह दया-दाक्षिण्य आदि सब गुणों के आलवाल (क्यारी) सुकुमार बाल सामान्य नहीं हैं किन्तु समस्त शास्त्रों के पारगामी तथा सारे संसार में जीवों की जो मनुष्यादि योनियां है, उनकी रक्षा करने में तत्पर श्री वर्द्धमान-नामक
॥१४३॥