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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥१४॥ भगवतः कलाचार्य समीपे प्रस्थानादि वर्णनम् NE सुउमालो वालो न साहारणो] यह समस्त गुणों का आलवाल (क्यारी) सुकुमार बालक साधारण नहीं है [किंतु सव्व सत्थपारिणो सव्वजगजीवजोगीरक्खणपरायणो सिरिवद्धमाणो चरमतित्थयरो अस्थि ति] किन्तु समस्त शास्त्रों में पारंगत जगत के सर्व प्राणियों की रक्षा करने में तत्पर श्री वर्द्धमान स्वामी चरमतीर्थकर है। :". [तए णं से सके देविंदे देवराया] इसके बाद शक्रेन्द्र देवराज ने [समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ] श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना की नमस्कार किया [वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए] वन्दना नमस्कार करके जिस दिशा से प्रकट हुए थे उसी दिशा में चले गये। : [पहू य सुसज्जीकयं गयमारुहिय तेण जनसमुदाएण] भगवान् सिंगारे हुए हाथी पर बैठ कर बार बार उस जनसमुदाय के द्वारा [अवलोइज्जमाणे अवलोइज्जमाणे सप्पासायं सप्पासायं अभिगमीअ] अवलोकन किये जाते हुए प्रसन्नता के साथ अपने MAHESISASTERESE LEASE ॥१४॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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