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________________ कल्पसूत्रे | पुरिसम्मि एयारिसा गुणा हवंति चेव] सच है महापुरुषों में ऐसे गुण होते ही हैं [केरिसं सशब्दार्थे 2 अस्स गांभीरियं जं एयारिसगुणगणसंपण्णो वि] कैसी गम्भीरता है इस में, जो ऐसे ॥१४॥ गुण गण से संपन्न होकर भी [एसो एत्थ पढिउं समागओ] यह यहां पढने आया है [सच्चं अद्धभरिओ घडो सदं करेइ न पुण्णो] सच है, आधा भरा हुआ घडा ही आवाज करता है पूरा भरा नहीं [दुब्बलो चिक्करेइ न सूरो] दुर्बल ही चीत्कार करता है शूर नहीं । [कंसं गुंजेइ न कणयं] कांसा आवाज करता है न कि सोना [महापुरिसा णियमहिमं न पयासेंति] महापुरुष अपनी महिमा को आप प्रकाश नहीं करते। [तए णं से सक देविंदे देवराया] उसके बाद शक देवेन्द्र देवराज ने [णिय इंद रूवं पगडिय] अपना इन्द्र का रूप प्रकट करके [सयलगुणणिहिणो महावीरपणो अउलबलवीरियबुद्धिपहुत्तं] सकलगुणों के सागर वीर प्रभु के अतुल बल वीर्य बुद्धि और प्रभाव [तट्रिए जणे परिचाइंसु] का परिचय दिया कि [जं इमो सयलगुणआलवालो ॥१४॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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