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भगवतः,
- कल्पसूत्रे सशब्दार्थे
कलाचार्यसमीपे प्रस्थानादि
॥१३९॥
वर्णनम्
सप्पासायं सप्पासायं अभिगमीअ । एयारिसपवित्त पहुपवित्तिओ माउपियाईणं चेयसि भुज्जो भुज्जो अमंदाणंदसिंधूच्छलंततरंगो न संमाओ॥३५॥
शब्दार्थ-[एएसिं णं पण्हाणं चित्तचमकारपवत्तेण] इन प्रश्नों के चित्त में चमत्कार उत्पन्न करनेवाले [वागरेण तत्थटिया सव्वे जणा विम्हिया जाया] उत्तर से वहां स्थित सभी जन चकित रह गये। [कलायरिओ वि पसन्नचित्तो संजाओ] कलाचार्य भी प्रसन्न चित्त हुआ। [तओ पच्छा तेण चिंतियं] उसके बाद कलाचार्य ने सोचा [अच्छेरयमिणं जं एएण दुद्धमुहेण सुउमालेण बालेण] यह आश्चर्य है कि इस दुधमुहे सुकुमार बालक ने [एयारिसी विज्जा कओ सिक्खिया ?] ऐसी विद्या किससे सीखी ? [जो मम मणंसि चिरकालाओ संदेहो आसी] मेरे मनमें चिरकाल से जो सन्देह था [जोय न केण वि अज्जपज्जंतं निवारिओ] और जिसे आज तक किसीने दूर नहीं किया था, [सो सव्वो अणेण निवारिओ] वह सब आज इसने दूर कर दिया [सच्चमेयं जं महा
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