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का सार प्रकाशित ।।।।
कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥१३॥
भगवतः कलाचायसमीपे । प्रस्थानादि वर्णनम्
श्री वर्द्धमान स्वामी ने धर्म का स्वरूप बतलाते हुए उपशम-मनोनिग्रह कहा। उपशम कहते हुए विरमण (सावद्य व्यापारों का त्याग) कहा। विरमण कहते हुए प्राणातिपातआदि पापों का न करना कहा । पापों का न करना कह कर निर्जरा, बंध और मोक्ष का स्वरूप कहा ॥३४॥
मूलम्-एएसिं णं पण्हाणं चित्तचमक्कारपवत्तेण वागरेण तत्थट्ठिया सव्वे जणा विम्हिया जाया। कलायरिओ वि पसन्नचित्तो संजाओ। तओ पच्छा तेण चिन्तियं-अच्छेरयमिणं जं एएण दुद्धमुहेण सुउमालेण बालेण एयारिसी | विज्जा कओ सिक्खिया ? जो मम मणंसि चिरकालाओ संदेहो आसी, जो य न केणवि अज्जपज्जंतं निवारिओ, सो सव्वो अज्ज अणेण निवारिओ। सच्चमेयं, जं महापुरिसम्मि एयारिसा गुणा हवांति चेव केरिसं अस्स गांभी-
॥१३७॥