________________
भगवतः कलाचार्यसमीपे प्रस्थानादि वर्णनम्
कल्पसूत्रे कहते हैं-पूर्णरूप से शुद्ध स्वर्ण को क्या शोधा जाता है ? नहीं शोधा जाता, क्योंकि सशन्दा वह तो स्वतः शुद्ध है। आम के वृक्ष को तोरणों से सिंगारा जाय ?, नहीं, वह तो स्वयं स ॥१३५॥ Mail ही पत्तों से युक्त है । अमृत को मधुर द्रव्यों से क्या वासित किया जाय ?, नहीं, क्योंकि
वह तो स्वभाव से ही मधुर होता है। शारदा देवी को क्या पाठविधि सिखाने की | आवश्यकता होती है ?, नहीं, क्योंकि वह तो स्वयं सीखी हुई है । चन्द्रमा में धवलता है।
सोने का सोने के पानी से संस्कार करने की आवश्यकता है ? नहीं वह तो स्वयं ही परिमी कृत है । जो भगवान् तीन ज्ञान-मतिश्रुतअवधि के भण्डार, समस्त कलाओं के सागर, विशाल शक्ति के निधान, महान् मतिमान् , महाधीर-धीरों में अग्रगण्य और अत्यधिक गंभीरता आदि गुणों से संपन्न थे, वे वर्द्धमान खामी, अल्पज्ञानी कलाचार्य के
पास पढने जाएँ, यह अत्यन्त अयुक्त बात थी। भगवान् के कलाचार्य के समीप शिक्षा । ग्रहण करने के लिए जाने की प्रवृत्ति से देवलोक में, सुधर्मा सभा में, शक्र देवेन्द्र