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कल्पसूत्रे
साथ और बहुत बडे परिवार के साथ, कलाशिक्षक के समीप पहुँचाया। भगवान् वर्द्ध- भगवतः सशब्दार्थे।
कलाचार्यमान अवधिज्ञान से विभूषित होकर भी अनजान की सी चेष्टा करके, माता-पिता के
समीपे ॥१३४॥ आग्रह से कलाचार्य के समीप पधारे। कलाचार्य, श्री वर्द्धमान का शोभन आगमन प्रस्थानादि
वर्णनम् जानकर प्रसन्न हुआ। और ऊँचे आसन पर बैठा हुआ वह हर्ष की तीव्रता से फूल
उठा-पुष्ट हो गया। अद्वितीय हार के धारणहार, गंभीरता आदि गुणों से सुशोभित । सिद्धाथ महाराज के पुत्र राजकुमार वर्द्धमान अभी-अभी परिवार सहित मेरे समीप आयेंगे, इस प्रकार विचार कर कलाचार्य उनके आने की बाट जोहने लगा।
किन्तु थोडी सी कलाओं का ज्ञाता पंडित, समस्त कलाओं में निपुण, पुरुषों में .. .. उत्तम, सब श्रेष्ठ विद्याओं के अधिपति देवता के द्वारा भी वन्दनीय अर्थात् सरस्वती ।
... के द्वारा भी स्तवनीय त्रिशलानन्दन भगवान् को क्या पढाने में समर्थ हो सकता था? ! . अर्थात् नहीं हो सकता था, क्योंकि वे तो स्वयं संबुद्ध थे। इसी अर्थ को दूसरे प्रकार से । ॥१३४॥