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________________ भगवतः... कलाचार्यसमीपे प्रस्थानादि वर्णनम् कल्पसूत्रे उसका उत्तर देकर सम्पूर्ण न्याय शास्त्र का सार प्रकाशित कर दिया [तओ पच्छा तेण सशब्दार्थ धम्मविसए पुच्छियं] इसके बाद इन्द्रने धर्म के विषय में प्रश्न पूछा [भगवया धम्म॥१३३॥ सरूवं आघवमाणेणं उवसमो आघविओ] भगवान वर्द्धमान ने धर्म का स्वरूप बतलाते हुए उपशम-मनोनिग्रह कहा [उवसमं आघवमाणेणं विवेगो आघविओ] उपशम कहते हुए विवेक कहा [विवेगं आघवमाणेणं विरमणं आघवियं] विवेक कहते हुए विरमण l कहा [विरमणं आघवमाणेणं पावाणं कम्माणं अगरणं आघवियं] विरमण कहते हुए | पापकर्मों का अकरण (न करना) कहा [तं आघवमाणेणं णिज्जराबंधमोक्खसरूवं आघAil वियं] पापकर्मों का अकरण कहते हुए निर्जरा, बंध और मोक्ष का स्वरूप कहा ॥सू० ३४॥ Pil: अर्थ–'तए णं' इत्यादि । तदन्तर किसी समय भगवन् महावीर स्वामी के माता पिता ने समस्त कलाओं के ज्ञाता प्रभु को भी प्रगाढ प्रेम के कारण, कलाओं का ज्ञान प्राप्त कराने के लिए महोत्सव के साथ, भारी भेंट के साथ, मनोहर गाजों-बाजों के ॥१३३॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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