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________________ कलाचाये. कल्पात्रे तओ पट्टिओ] आसन के चलायमान होने पर अवधिज्ञान का उपयोग लगाने से भगवतः सबम्दार्थे आसन के चलायमान होने का कारण ज्ञात हो गया। तब शक्रेन्द्र शीघ्र ही देवलोक से. मी ॥१३२॥ चला और [माहणस्वेण पहुसमीवे आगमिय पहुं उच्चासणे उवणिवेसिय] ब्राह्मण का || प्रस्थानादि वर्णनम् ...म्प बना कर प्रभु के पास आया। प्रभु को उच्च आसन पर प्रतिष्ठित करके [जा जा । पहाई कलायरियहियए संसयरूवेण ठियाई ताई चेव पण्हाई पुच्छेइं] जो जो प्रश्न कलाचार्य के हृदय में संशयरूप से स्थित थे वेहो प्रश्न पूछे .[तत्थ इंदेण वागरणविसयं पण्हं कयं] उन प्रश्नों में सर्व प्रथम इन्द्रने व्याकरण विषयक प्रश्न पूछा [भगवया तं ... वागरिय संखेवेण सव्वं वागरणं कहियं] भगवान् वर्द्धमान स्वामीने उस प्रश्न की उचित रूप से व्याख्या करके, थोडे ही अक्षरों में समस्त व्याकरण शास्त्र कह दिया [तओ पच्छा इंदेण णयप्पमाणसरूवं पुच्छियं] इसके बाद इंद्रने नय और प्रमाण का स्वरूप । पूछा [तं भगवया संखेवेण आधविय सव्वं णायमम्मं पयासियं] भगवान ने संक्षेप में ॥१३॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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