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भगक्तो
वाल्याव
स्थावर्णनम्
में करना
अल्पसूत्रे .. बढता है, तथा वय से ऐसे बढने लगे जैसे पर्वत की गुफा में स्थित चम्पक वृक्ष वढता है। सचन्दार्थ । इस प्रकार वह भगवान् मयूर के पांखों से युक्त धोटियों से सोहनेवाले, समान वयवाले । - ॥१२॥ "" ! बालकों के साथ, बाल्यावस्था के योग्य, अपने महान् शक्तिमय स्वरूप को छिपाकर क्रीडा
करने लगे। एक समय देवलोक में देवगणों से सुशोभित सुधर्मा नामकी सभा में सौधर्म
देवलोक के स्वामी इन्द्र बैठे हुए थे। उन्होंने अपने अनुपम गुणों से वर्धमान (बढते हुए) . श्री वर्धमान प्रभुके बल-पराक्रम का वर्णन करना प्रारंभ किया। उस वर्णन किये जाने
वाले पराक्रम को कानों से सुनकर और हृदय में धारण करके सब देवों और देवियों का । मानस हर्ष से विकसित हो गया। उन देव-देवियों में से किसी एक मिथ्यादृष्टि ... देव को श्री भगवान महावीर के पराक्रम की महिमा पर विश्वास नहीं हुआ वह ईर्षालु
था, अतः उसके मन में दुर्भावना उत्पन्न हुई । वह तत्काल ही मनुष्य लोक में आया ..... और बालकों के साथ क्रीडा करते हुए भगवान् वर्द्धमान स्वामी को अपनी पीठ पर चढा
॥१२४॥