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________________ IFFER : . . भगवतो. कारो सशन्दार्थे ॥१२३॥ दुष्ट अभिप्राय वाले देव को नमाने के लिए [तप्पिटुमज्झासीणो एव पह मूढगूढा बाल्यावसयण्णू तप्पिटुवरि नियसरीरस्स अफ्फारं भारं आरोविय] देव की पीठ पर चढे चढे ही स्थावर्णनम् अपने शरीर को थोडा सा भारीकर दिया। [ते णं सो दुरासओ देवो तारेण सरेण चिक्करिय पुढवीतले निवडिओ] प्रभुके शरीर का स्वल्प भार पड़ने पर वह देव उसे भी | सहन न कर सका वह दुरात्मादेव बहुत उच्चस्वर से चीत्कार करके पृथ्वीतल पर आ गिरा [तए णं देवाणं जयज्झुणी सुरज्झुणी समजणि] उसके गिरने पर आकाश में देवों की जयध्वनि हुई [तए णं णयग्गीवो सो देवो खामिय देवाहिदेवो पत्त सम्मत्तो I सयधामं पत्तो] तत्पश्चात् भगवान् के चरणों पर शिर रखकर वह उपद्रव करनेवाला देवने । भगवान् से अपना अपराधखमाया और सम्यक्त्व प्राप्त कर अपने स्थान पर चला गया।३३। अर्थ-'तए णं' इत्यादि। नामकरण के बाद भगवान् श्रीमहावीर क्रमशः अपने सद्गुणों l l के समूह से उसी प्रकार बढ़ने लगे, जैसे शुक्लपक्ष में विराजमान द्वितीया का चन्द्रमा ॥१२३॥ .
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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