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कल्पसूत्रे
शब्दार्थे ।११५॥
मातापितभ्याम् कृत भगवतोनामाभिधानम्
णामं समणे भगवं महावीरे] देवों ने नामकरण किया श्रमण भगवान् महावीर
॥ इति पंचम वाचना ॥सू०३२॥ अर्थ-'तएणं' 'समणस्स' इत्यादि । इसके बाद श्रमण भगवान् श्री महावीर के माता पिता ने ग्यारह दिन बीत जाने पर और सूतक-जन्म संबंधी अशौच दूर हो जाने पर, | | बारहवें दिन बहुत सा अशन, पान, खाद्य, स्वाय, तैयार करवाया और मित्रों को, | ज्ञातियों-स्वजातीय जनों को, स्वजनों-आत्मीय जनों को, संबन्धियों-पुत्र और पुत्रियों | के श्वशुर आदि संबन्धियों को तथा परिजनों-दासीदास आदि परिजनों को भोजन के लिए बुलाया-निमंत्रित किया। उन्हें निमंत्रित करके बहुत-से शाक्य आदि श्रमणों ब्राह्मणों, कृपणों दीनों, वनीपकों-याचकों, भिक्षोण्डो-भिखारियों और गृहस्थों को भोजन वस्त्र आदि का दान दिया। जो लोग पैत्रिक सम्पत्ति में भागीदार थे, उन्हें सम्पत्ति का बँटवारा किया।बँटवारा करके मित्रों, ज्ञातिजनों स्वजनों, संबंधियों और परिजनों को भोजन
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