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________________ कल्पसूत्रे धानम् माणे' त्ति कटु] गुणमय गुणनिष्पन्न 'वर्द्धमान' नाम हो [भगवओ महावीरस्स वद्ध- मातापितृ भ्याम् कृत शब्दार्थे माणे' त्ति नामधिज्जं करेंति] इस प्रकार कह कर भगवान महावीर का 'बर्द्धमान' नाम भगवतो१७" । रक्खा। [समणे भगवं महावीरे गुत्तेणं कासवे] श्रमण भगवान् महवीर काश्यप गोत्रीय | नामाभि थे [तस्स णं इमे तिणि नामधिज्जा एवमहिज्जंति] उनके तीन नाम इस प्रकार I कहे जाते है [ अम्मापिउसंतिए 'वद्धमाणे' ति] माता पिता द्वारा रक्खा हुआ नाम .. वर्द्धमान [सहसंमुइयाए 'समणे ति] सह समुदिता-सह भाविनी तपश्चर्या आदि की । शक्ति के कारण इसका नाम श्रमण था। [अयले भयभरेवाणं खंता पडिमासतपारए] अचल, भय भेरव को सहने वाले क्षमा शील प्रतिमास तप में रत रहने वाले [अरति रति सहे] अरति और रति को । सहने वाले [दविए] संयम वाले [धितिविरियसम्पन्ने] धृति वीर्य से सम्पन्न [परि- ।। ॥ सहोवसग्गसहेत्ति] तथा परीषह उपसर्गों को सहने वाले होने के कारण [देवेहिं से कतं ॥११४॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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