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________________ कल्पसूत्रे शब्दार्थे ॥११२ ॥ africa ] मित्रों ज्ञातिजनों, संबन्धीजनों और परिजनों को आमन्त्रित किया [उवनिमंत्]ि आमंत्रित करके [बहूणं समणमाहणकिवणवणीमगभिच्छ्रेडगारंतीणं विच्छति] से श्रमणों ब्राह्मणों, दीनों, याचकों, भिखारियों तथा गृहस्थों को भोजनबहुत अदि दिया, [दायासु णं दायं पज्जाभाएंति ] भागीदारों को उनका भाग बांटा [पज्जाभाइता] बांटकर [मित्तणाइसयण संबंधिपरियणे भुंजावेंति] मित्रों ज्ञातिजनों स्वजनों सम्बन्धीजनों और परिजनों को भोजन कराया [भुंजावित्ता ] भोजन करा के फिर [मित्तनाइसयणसंबंधिपरियणसमक्खं इमं एयारूवं कहेंति] मित्रों ज्ञातिजनों, स्वजनों सम्बन्धीजनों और परिजनों के समक्ष इस प्रकार का यह वचन कहा - [जप्पभि चणं अम्हं इमे दारए गर्भ वइक्कंते] जब से हमारा यह बालक गर्भ में आया [तप्पभिई च इम कुलं] तभी से यह कुल [विउलेणं हिरण्णेणं] विपुल हिरण्य से [सुवण्णेणं] [] [धणे णं] धान्यसे [विहवेणं] विभव से [ईसरिएणं] ऐश्वर्य से मातापितृ भ्याम् कृत भगवतीनामाभि धानम् ॥१.१२ ॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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