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________________ +DE -कल्पसूत्रे सशब्दार्थे २९ मातापित'वद्धमाणे' त्ति कटु भगवओ महावीरस्स 'वद्धमाणे' ति नामधिज्ज करेंति। भ्याम् कृत समणे भगवं महावीरे गुत्तेणं कासवे। तस्स णं इमे तिण्णि नामधिज्जा एव- भगवतो नामाभिमाहिज्जति-अम्मापिउसंतिए ‘वद्धमाणे त्ति सहसमुइयाए ‘समणे' त्ति अयले । धानम् भयभेरवाणं खंता पडिमासतपारए अरतिरतिसहे दविए धितिविरियसंपन्ने वसग्गसहत्ति देवेहिं से कतं णामं समणं भगवं महावीरे ॥३२॥ - शब्दर्थ-[तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो] इसके बाद श्रमण भगवान महावीर के माता पिताने [एक्कारसमे दिवसे विइक्कंते] ग्यारहवां दिन बीतने पर [निव्वत्ते सूयगे] सूतक-जन्माशौच के निवृत्त होने पर, [संपत्ते बारसाहे] बारहवें दिन [विउलं असणपाणखाइमसाइमं उवक्खडार्विति] बहुतसा अशन पान, खाद्य और स्वाद्य भोजन बनवाया। [उवक्खडावित्ता] भोजन बनवाकर [मित्तणाइ सयणसबंधिपरियणे ॥१११॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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