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त्रिशलादेवी कृतपुत्रस्तुतिः
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JETRIE
कल्पसूत्रे से कभी भी संतप्त-दुःखित नहीं करता है, कभी भी पापाचरण नहीं करता है, स्नेह को सशब्दार्थे
प्रेम को अर्थात् दया को कभी भी नहीं छोडता है, इसका अभिप्राय यह है, कि वह किसी के ऊपर दया-रहित नहीं होता है, दया-दाक्षिण्य-आदि सद्गुणों का नाश वह कभी भी नहीं करता है, तथा द्रव्य के अवसान काल में, अर्थात् धनके क्षीण हो जाने पर चंचलता 'अस्थिरता को धारण नहीं करता है, अर्थात् किसी भी परिस्थिति में वह नीतिमार्ग का परित्याग नहीं करता हैं । इस श्लोक का अभिप्राय यह है-दीपक अपने आधारपात्र को । संतप्त करता है, मल अर्थात् कज्जल उत्पन्न करता है, स्नेह-तेल का शोषण करता है,
गुण का-बत्ती का नाश करता है और तेलरूप द्रव्य के अभाव के समय में अस्थिरता को । प्राप्त करता है अर्थात् बुझने लगता है। परन्तु सत्पुत्ररूप दीपक तो ऐसा नहीं होता ॥ है, वह तो सर्वथा इससे विलक्षण होता है। ..... अहा ! यह लोकोत्तर गुणों से विभूषित सत्पुत्र अतिशय आनन्ददायी होता है।
CCCCCES
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