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कल्पसूत्रे सभन्दाथें ११०७॥
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त्रिशलादेवी कृतपुत्र स्तुतिः
सुगन्धित करता है, उसी प्रकार तुम्हारे-जैसा सत्पुत्र अपने गुणों से इस समस्त लोक को शोभित बनाता है। तथा-हे पुत्र ! तुम्हारे-जैसे पुत्र से यह तीनों लोक प्रकाशित किये जाते हैं, जैसे तेल-विना के मणिदीप से यह घर आदि । अर्थात्-जिस प्रकार तेल रहित.मणिदीप सर्वदा समानरूप से गृह आदि को प्रकाशित करता है उसी प्रकार तुम्हारे-जैसे सत्युत्र तीनों लोकों को सतत समानरूप से प्रकाशित करता है। तथा ' तेरे-जैसा सापुत्र तीनों लोक के जीवों के हृदयरूपी कन्दरा के अभ्यन्तर में संचरण करने वाले चिरकालिक-अनादिकालीन अज्ञानरूप अन्धकार की परम्परा को दूर करता है।
फिर से कहती है 'पात्रं न तापयति' इत्यादि। .' इसका अर्थ यह है-कुलरूप-वंशरूप घर में यह सत्पुत्ररूप अलौकिक दीपक निश्चय ही कोई अपूर्व विलक्षण दीपक है जो सत्पुत्ररूप दीपक पात्र को अर्थात् सज्जन पुरुषों को सन्ताप नहीं पहुंचाता है, अथवा अपने आधाररूप माता पिता आदि को अपने आचरण
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