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कल्पसूत्रे
शब्दार्थ ११०६॥
धैर्य, औदार्य आदि सद्गुणों से रहित बहुत पुत्रों से क्या ? अर्थात्-ऐसे निर्गुण विशलादेवी
कृतपुत्रपुत्रों का कुछ भी प्रयोजन नहीं हैं । इसकी अपेक्षा तो हे पुत्र ! तुम्हारे-सदृश अद्वि
स्तुतिः तीय विशुद्ध गुणयुक्त अतन्द्र उत्साही कुलरूपी कैरव-श्वेतकमल के प्रबोधन करने । में चन्द्ररूप एक ही पुत्र श्रेष्ठ है, जो पुत्र पूर्वजन्मोपार्जित पुण्य से प्राप्त होता है। हे पुत्र! तुम्हारे जैसे सत्पुत्र के द्वारा माता-पिता की ख्याति दिशाविदिशाओं में सर्वत्र फैल जाती है, जैसे-वायुद्वारा दिशा-विदिशाओं में पुष्पों की सुगन्धि । अर्थात् -जिस प्रकार वायु-द्वारा पुष्पों की सुगन्धि दिशा-विदिशाओं में सर्वत्र प्रसारित होती है उसी प्रकार तुम्हारे-जैसे सत्पुत्र से माता-पिता की ख्याति दिशा-विदिशाओं में सर्वत्र फैलती है । तथा हे पुत्र ! तुम्हारे जैसे सत्पुत्र से यह तीनों लोक गुणगान से । सुवासित होते हैं, जैसे-सुगन्धियुक्त खिले हुए पुष्पों के गुच्छों से शोभित कल्पवृक्ष से नन्दनवन ! अर्थात्-जैसे कल्पवृक्ष अपने पुष्पों की सुगन्धि से समस्त नन्दनवन को ए ॥१०६॥