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________________ कल्पपत्रे प्रकार आपके जैसे पुत्र अपने गुणगान से तीनों लोक को सुवासित करता है। तथा जैसे त्रिशलादेवी प्रशन्दार्थे तैल रहित मणिदीप गृहादिक को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार तेरे जैसा पुत्र तीनों कृतपुत्र. ११०४॥ स्तुतिः लोक को प्रकाशित करता है, और वह त्रैलोक्यवर्ती जीवों के हृदयरूपी गुफा में संचरण ।। करने वाले चिरकालिक अज्ञानरूप अन्धकार समूह को दूर करता है। कहा भी है 'जो पात्र को संतप्त नहीं करता, मल को उत्पन्न नहीं करता, स्नेह का संहार नहीं ! करता, गुणों का नाश नहीं करता और द्रव्य के विनाश काल में अस्थिरता को प्राप्त । । नहीं होता है, ऐसा यह पुत्ररूप दीपक, कुलरूपी गृह में कोई विक्षलण ही दीपक हैं ॥१॥ ...यह लोकोत्तर गुणगणों से युक्त पुत्र बहुत आनन्ददायी होता है। और भी कहा है - चन्दन शीतल कहा गया है, उससे भी शीतल चन्द्र है, और चन्द्र-चन्दन से भी 1. महान् शीतल पुत्र को स्पर्श है। मिसरी मीठी होती है, उससे भी मीठा अमृत होता .. . है, और उससे भी मीठा पुत्र का स्पर्श होता है ॥२॥ ॥१०४॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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