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त्रिशलादेवी कृतपुत्र. स्तुतिः
करपात्रे फिर उत्सव की समाप्ति के बाद वह शील से सुन्दर, महिलाओं के कर्तव्य में सशन्दायें कुशल, उछलती हुई अत्यंत-चंचल आनन्द रूपी तरंगों से युक्त महास्नेहरूपी समुद्र में ॥१०३॥
तैरती हुई, खिले हुए कमल के समान मुखवाली, स्त्री पुरुषों के शुभाशुभलक्षण जानने वाली, तथा बालक के लक्षण को पहचानने वाली त्रिशला रानी, सुन्दर गुणों से अलंकृत, विशाल भालवाले बालककी स्तुति करने लगी- गुणविहीन बहुत पुत्रों से भी क्या ? किन्तु अप्रमादी, कुलरूपी कैरवराजीविकासी कमल को विकसित करने में चन्द्ररूप, तेरे जैसा अनुपम उज्ज्वल गुणवाला एक ही पुत्र अच्छा है, जो पुत्र पूर्वजन्मोपार्जित प्रचुर पुण्यों से प्राप्त होता है । जैसे-गन्धवाहपवन पुण्यों को सुगन्धि को दिशा विदिशाओं में प्रसारित करता है, उसी प्रकार जो
पुत्र अपने माता पिता के नाम को सर्वत्र प्रसिद्ध करता है। जैसे सुगन्धि युक्त अम्लान Vil (खिले हुए) पुष्पों के भार से सुशोभित कल्पवृक्ष, नन्दनवन को सुवासित करता है। उसी
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