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कल्पसूत्रे शब्दार्थे
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लक्खणणाणविक्खणा] स्त्रीपुरुषों के शुभाशुभ लक्षण-परिज्ञान में कुशल एवं [पइयपुत्तलक्खणा] बालक के लक्षण को पहचानने वाली [तं थविमुवक्कमित्था ] त्रिशला बालक की स्तुति करने लगी- [किं गुणगणवज्जिएहिं बहूहिं तणएहिं ?] गुणविहीन बहुत पुत्रों से भी क्या [रमेगोवि अतंदो कुलकेरवचंदो भवारिसो असरिसुज्जलगुणो सुओ] किन्तु अप्रमादी, कुलरूपी कैरव - रात्रिविकासी कमल को विकसित करने में चन्द्ररूप, तेरे जैसा अनुपम उज्ज्वलगुण वाला एक ही पुत्र अच्छा है । [ जो पुराकयसुकयकलावेण विज्ज] जो पुत्र पूर्वजन्मोपार्जितं प्रचुर पुण्यों से प्राप्त होता है । [जेण य गंधवाहेण परिमलराजीविव माउपिइपसिद्धी दिसोदिसि वितन्निज्जइ] जैसे गन्धवाह - पवनपुष्पों की सुगन्धिको दिशा - विदिशाओं में प्रसारित करता है, उसी प्रकार जो पुत्र अपने माता पिता के नाम को सर्वत्र प्रसिद्ध करता है । [सोरभभरियामिलाण कुसुम भार -भासुर सुरतरुणानंदज्जाणमिव य तेल्लोक्कं गुणगणेण वासिज्जइ ] तथा हे सुपुत्र ! तुम्हारे
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त्रिशला देवी
कृतपुत्र
स्तुतिः
॥१००॥