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कल्पसूत्रे 'सान्दार्थे ॥९९॥
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सिया उ महुरा नूनं सुहाइ महुरा तओ । तेहिं वि अस्स बालस्स संगमो महुरो महं ॥ ३ ॥
कणगं सुहयं लोए, रयणं च महासुहं । तेहिं विय महासोक्खो अस्स बालस्स संगमो ॥ ४ ॥ ३१॥
शब्दार्थ – [ ए ] उसके बाद [सा ललियसीलालंकियमहिला किइ कुसला ] सुन्दर निर्दोष शील-स्वभाव अथवा सद्वृत्त से युक्त महिलाओं के कर्तव्यों में निपुण, [तिसला कमणिज्जगुणजालं विसालभालं बालं विलोगिय] उस त्रिशला देवीने मनोहर गुणगण वाले शुभलक्षणयुक्त ललाटवाले अपने पुत्र [ महावीर ] को देख कर [ समच्छलंता मंदाणंदतरलतरतरंग महासिनेहवरुणगिहणिमामज्जमाणमाणसा] उछलते हुए अतिशय चंचल आनन्दरूप तरङ्गवाले महास्नेहरूपी समुद्र में तैरती हुई [ इत्थी - पुरिस
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त्रिशलादेवी कुतपुत्रस्तुतिः
॥ ९९ ॥