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________________ सिद्धार्थकृत पुत्रजन्ममहोत्सवः कल्पसूत्रे बगपवगकहगपाढगलासगआरक्खगलंखतूणइल्लतुंबवीणियअणेगतालायराणुचरियं कारा- समन्दार्थे वेइ] नटों, नर्तकों, (स्वयं नाचनेवाले) जल्लों-वरत्रा-रस्सी पर खेल करनेवाले मल्लों, ॥१२॥ (मौष्टिकों घूसेबाजी करनेवाले एक प्रकार के मल्ल), विलम्बक (विदूषक) प्लावक (छलांगमारकर गडहे आदि को लांघनेवाले) (कथक-मजेदार कहानी कहनेवाले) (पाठक सुक्तियां सुनानेवाले, जासक-रास गानेवाले, आरक्षक-शुभाशुभ शकुन कहनेवाले नैमित्तिक, लंख-वांस पर खेल खेलनेवाले, तूणावंत-तूणानामक बाजा बजाकर कथा करनेवाले इन सब से नगर को युक्त करवाया [जूअसहस्सं मुसलसहस्सं च आणाइत्ता एगओ ठवावेइ] हजारों धुराएँ तथा हजारों मूसल मंगाकर एक जगह रखवा दिये [जण्णं अस्सि महोच्छवंसि को वि सगडे वा हले वा णो वाहउ] जिससे कि इस महोत्सव में कोई भी मनुष्य गाडी और हल न जोते [नो वा मुसलेहिं किंचिवि खंडउत्ति] तथा | किसी भी धान्य आदि वस्तु को न कूटे, अर्थात् सभी लोग उत्सव में सम्मिलित SHश ॥९२॥ smance
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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