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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे सिद्धार्थकृत पुत्रजन्ममहोत्सवः १९१॥ लगवाये [उवचिय चन्दनकलसं] चंदन से लिप्त कलश स्थापित करवाये [चंदनघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागं] द्वार द्वार पर चंदन लिप्त घटों से रमणीय तोरण बनवाये [आसत्तोवसत्तविउलवद्वग्धारियमल्लदामकलावं] नीचे से ऊपर तक के भाग को स्पर्श करनेवाली विस्तीर्ण गोल और लम्बी फूलमालाओं के समूह से सुशोभित करवाया [पंचवण्णसरससुरहिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं] जहां तहां बिखरे हुए काले नीले आदि पांच वर्षों के सुन्दर और सुरभिसम्पन्न पुष्पों के समूह की शोभा से युक्त करवा दिया [कालागुरुपवरकुंदरुकतुरुक्कधूवडझंतमघमघंतगंधुधूयाभिरामं] तथा कालागुरु श्रेष्ठ कुन्दुरुक्क (चीडा नामक गंधद्रव्य) तुरुष्क (लोबान) तथा दशांगधूप आदि अनेक सुगन्धि द्रव्यों के जलाने से उत्पन्न हुई गन्ध, हवा से चारों ओर फैल रही थी और इस प्रकार सारे नगर को मनोहर बनवाया [सुगंधवरगंधियं] उत्तम चूर्णों से सुगन्धित | करवाया [गंधवटिभूयं] गंध की वट्टी के समान बनवाया [नड़नदृगजल्लमल्लमुष्ट्रिय वेलं ॥९१॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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