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कल्पसत्रे सशब्दार्थे
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। खत्तियकुंडग्गामं नयरं] राजा सिद्धार्थ के उत्साह की धारा उत्तरोत्तर बढती जा रही थी। सिद्धार्थकृत।
पुत्रजन्मउन्होंने क्षत्रियकुण्डग्राम नगर को [सभितरबाहिरियं आसित्तसंमज्जिओवलित्तं] भीतर
महोत्सवः. ॥९॥
से भी और बाहर से भी खूब सजवाया। पहले धूल को शान्त करने के लिए भूमिको । जल से सिंचवाया, फिर बुहारी से झडवाया और फिर गोबर तथा मृत्तिका से लीपवाया। [सिंघाडगतिगचउक्कचच्चरचउम्मुहमहापहपहेसु] शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख महापथ और पथों में [सित्त सुइ संमट्टरत्यंतरावणवीहियं] रथ्याओं के मध्यभाग में तथा बाजार की गलियों में सिंचन करवाया, इनकी सफाई करवाई [मंचाइ.
मंचकलियं] मचानों और मचानों पर मचानों से युक्त कर दिया। [नाणाविह रागभूसिB. यज्झयपडागमंडियं] तरह तरह के रंगों से शोभित ध्वजाओं एवं पताकाओं से मण्डित । करवाया। [लोउल्लोइयजुत्तं] गोबर आदि से लीपवाया खडी आदि से पुतवाया [गोसीस सरसरत्तचंदनददरदिन्नपंचंगुलितलं] गोशीर्षचन्दन तथा लाल चंदन के बहुत से हाथे
॥९ ॥
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