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पुत्रजन्म
कल्पस्त्रे | होकर आनन्द का उपभोग करे ॥३०॥
सिदार्थकृत सशब्दार्थे
अर्थ-'तए णं' इत्यादि । तब राजा सिद्धार्थ उत्सव मनाने के लिए उद्यत हुए। ITAM महोत्सवः १९३॥
प्रातःकाल के अवसर पर उन्होंने आनन्द के समूह को देनेवाले भगवान् के जन्म को सूचित करनेवाले अन्तःपुर के दासदासियों को तथा भिखारियों को दीनतारूपी सेना के पराजय से रहित कर दिया। अर्थात् सदा के लिए उन्हें दरिद्रता से मुक्त कर दिया। | तथा नगर निवासी जनसमूहरूपी वन को भी कुबेर की लक्ष्मी के विलास का उपहास Pil करनेवाले अर्थात् अत्यधिक, धनरूपी जल की विशाल धाराएँ बरसा कर, दुःखरूपी Kul दावानल की जलती हुई ज्वालाओं का ग्रास होने के प्रबल भय से मुक्त करके, उत्पन्न | all होनेवाले अतिशय प्रमोदरूपी अंकुर-समूह से सम्पन्न कर दिया। अभिप्राय यह है कि | सिद्धार्थ राजाने कुबेर के धन से भी अधिक धन देकर नागरिकजनों को दरिद्रता के । दुःख से रहित बना दिया। और आनन्द से युक्त कर दिया। इसके अतिरिक्त सिद्धार्थ
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