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अनि हर्षिणी टीका अ. ६ नास्तिकवादिवर्णनम्
१८५ - तस्मात् (परिग्रहात्) । एवम् अनेन प्रकारेण सर्वस्मात् (६) क्रोधात् क्रोधः अक्षमापरिणामः क्रोधमोहनीयोदयजन्यः कृत्याकृत्यविवेकोन्मूलकः स्वपरयोरपायहेतुरन्तर्बहिःकम्पनलक्ष्यो जीवपरिणामविशेषस्तस्मात् ।
(७) मानः अभिमानोऽहङ्कार इति यावत्, स च जातिकुलादिसमुत्पन्नः सकलानर्थमूलम् । उक्तञ्च
"अहङ्कारग्रहो यावद्, हृदयव्योम्नि विद्यते ।
तावत् सुखसमाधीनां, नैव लेशोऽपि वर्तते" ॥१॥ . शान्ति का शत्रु है । व्याक्षेप का मित्र है, अर्थात् धर्मकार्य में अन्तराय करने वाला है । अहङ्कार का घर है । ध्यान का भयंकर शत्रु है । दुःख का उत्पादक है । सुख का विनाशक है । पाप के रहने का निज स्थान है । विहान को भी वह परिग्रह क्रूर ग्रह के समान क्लेश और नाशदशा को पहुँचाता है ॥ १ ॥
., ऐसे परिग्रह से, तथा क्रोध से
__(६) क्रोध-अक्षमारूप परिणाम को क्रोध कहते हैं, क्रोध मोहनीय के उदय से उप्तन्न होने वाला, कृत्य और अकृत्य के विवेक को भुलाने वाला स्वपर को गन्नाप पहुंचाने वाला, भीतर और बाहर कम्पन उप्तन्न करने वाला जीवपरिणाम-विशेष ही क्रोध कहा जाता है, इस क्रोध से।
(७) मान-अभिमान, अहंकार । यह जाति और कुल आदि से उप्तन्न होता है, एवं सर्व अनर्थ का मूल है । कहा भी हैખ્યાક્ષેપને મિત્ર છે, અર્થાત ધર્મકાર્યમા અન્તરાય કરવાવાળે છે. અહ કાનું ઘર છે. ધ્યાનને ભયકર શત્રુ છે દુખનો ઉત્પાદક છે સુખને વિનાશક છે પાપને રહેવાનુ નિજસ્થાન છે વિદ્વાનને પણ આ પરિગ્રહ ક્રૂરગ્રહની પેઠે કલેશ તથા નાશयाने ५मा छ (१)
એવા પરિગ્રહથી તથા ક્રોધથી
(६) क्रोध-पक्षमा३५ परिणाम होष छ है।धमा नायना यथी सत्पन्न થવાવાળા, કૃત તથા અકૃતના વિવેકથી રહિત કરવાવાળા સ્વપરને સન્તાપ પહોંચાડનાર, અતરમાં અને બહાર કમ્પન ઉત્પન્ન કરવાવાળા જીવપરિણામ-વિશેષને જ ક્રોધ કહેવાય છે આ કંધથી
() मान-अभिमान, माई १२, मेति भने ५८ माहिथी उत्पन्न थाय છે તે સર્વ અનર્થનું મૂળ છે કહ્યું પણ છે: