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________________ १८२ दशाश्रुतस्कन्धमत्रे द्वीन्द्रियादयो जीवाः मूक्ष्माश्चैकेन्द्रियाः पृथिव्यादयः, ये चापि बादराः, न तु मुक्ष्मनामकर्मोदयवर्तिनः सर्वलोकव्यापिनस्तेषां वधासम्भवात् , स्वत आयुः क्षयेणैव तेपां मरणात, तत्र साधनां द्विविधादपि प्राणातिपातानिवृत्तिविधेया, तत्र स्थूलप्राणातिपातो द्विविधः संकल्पजाऽऽरम्भजभेदात्, तत्र-संकल्पन:-'इमं हन्मी' -ति मनोविचाग्जातः, आरम्भजः-कर्पणादिजातः, तस्मात् पड्जीवनिकायडिंसातः यावज्जीव-जीवनपर्यन्तम् अप्रतिविरतः-न प्रतिविरना न निवृत्तो नास्तिकस्तत्रैव । सर्वदा निस्तो भवतीति शेपः। यावत्-यावच्छन्देन मृपावादाऽदत्ताऽऽदानमैथुनानि सङ्गृह्यन्ते, तत्र (२) मृपावादः-सतोऽपलापोऽसतश्च प्ररूपणं, स च सर्वद्रव्यगुणपर्यायविपये भवति, ततः। स्थूल और सूक्ष्म भेद ले । स्थूल हीन्द्रिय से लेकर पञ्चेन्द्रिय तक, और एक इन्द्रिय वाले पृथ्वी आदि सूक्ष्म कहे जाते हैं। सूक्ष्मनामकर्मोदय वाले जो कि सर्वलोक में व्याप्त हैं, उनका यहाँ ग्रहण नहीं किया जाता, क्यों कि उनका वध असम्भर है, उनका मरण स्वतः आयुष्य का क्षय होने से होता है। साधुओ की पूर्वोक्त प्रकार के स्थूल और सूक्ष्म इन दोनों प्रकार के प्राणातिपात से निवृत्ति होती है । स्थूल प्राणातिपात दो प्रकार का है । (१) संकल्पज और (२) आरम्भज । संकल्पज “मैं इसको मारूं" ऐसा मन में विचार करना । - आरम्भज-कर्पण-खेत खेडने आदिसे होने वाला । वह नास्तिकवादी इस षड्जीवनिकाय की हिंसा से जीवन पर्यन्त कभी निवृत्त नहीं होता है । यहा 'यावत्' शब्द से मृषावाद अदत्तादान और मैथुन भी समझना चाहिये। યથી લઈને પચેન્દ્રિય સુધીના અને એક ઈન્દ્રિયવાળા પૃથ્વી આદિ સૂકમ કહેવાય છે સૂફમ એટલે સૂકમનામકર્મોદય વાળા કે જે સર્વમાં વ્યાપ્ત છે તે અર્થ અહીં ગ્રહણ કરેલ નથી, કેમકે તેમને વધ કરે અસ ભવ છે તેમનું મણ પિતાની મેળે આયુષ્યને ક્ષય થતા થાય છે. સાધુઓને પકત પ્રકારના સ્થલ તથા સૂકમ એ બે - પ્રકારના પ્રાણાતિપાતથી નિવૃત્તિ થાય છે લ પ્રાણાતિપાત બે પ્રકારના છે (૧). संकल्पज भने (२) आरम्भज । संकल्पज- तेने ॥३' मनमा विया२ . ४२वो आरम्भज-कर्षण= णेत मेडयु साहिथी थवावा. ते नास्तिवाही भी पहજીવનિકાયની હિંસાથી જીવનપર્યત કદી નિવૃત્ત થતું નથી અહી રાવતું શબ્દથી मृपावाद, अदत्तादान, तथा मैथुन ५ए सभ७ से नये
SR No.009359
Book TitleDashashrut Skandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages497
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size26 MB
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