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दशाश्रुतस्कन्धमत्रे
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श्रद्धेयतया सकलजनग्राह्यं वचन--वचो यस्य स तथा, तावस्तत्ता । २ मधुरवचनता--मधुरं कोमलं मिष्टतायुक्तं वचनं यस्य स तथा, तद्धावस्तत्ता, माधुर्यगाम्भीर्यादिगुणयुक्तत्वेन सकलश्रोतृजनाहादकवचनवत्तेत्यर्थः । ३ अनिश्रितवचनता-अनिश्रितं-रागद्वेपरहितं कश्चिदुद्दिश्याऽकथितं सर्वसाधारणहितकरं वचनं यस्य स तथा, तद्धावस्तत्ता, पक्षपातवचनरहिततेत्यर्थः । ४ असंदिग्धवचनता संदिग्धं -संदेहः--साधक-बाधक-प्रमाणामावादनवस्थितानेककोटिसंम्पर्शि ज्ञान संशयापरपर्यायस्तदाश्रितं, न संदिग्धमसदिग्धं-सकलसंशयादिदापरहितं वचनं यम्य स तया; । तद्भावस्तत्ता सैपा वचनसम्पत् ।। सू० ४ ॥ पूर्ववत् समझना चाहिये । (१) आदेयवचनता (२) मधुरवचनना (3)
अनिश्रितवंचनता (४) असंदिग्धवचनता। इस तरह चार प्रकार की वचनसम्पदा है । (१) आदेयवचनता-जिसका वचन श्रद्धायुक्त होनेसे समस्त मनुष्यों को ग्रहण करने योग्य है वह आदेयवचन कहा जाता है। ऐसे वचनवाला होना । (२) मधुरवचनता-कोमलता और माधुर्य-युक्त वचनवाला होना। तात्पर्य यह है कि समस्त मनुष्यों को सुनने में आनन्द उत्पन्न करने वाला माधुर्थ गम्भीरता आदि गुणयुक्त वचनवाला मधुरवचनी कहा जाता है । ऐसा होना । (३) अनिश्रितवचनतारागद्वेषरहित, सर्वसाधरण का हितकारक, पक्षपातरहित वचन वाला होना । (४) असदिग्धवचनता - साधक और बाधक प्रमाण न होने से अनेक प्रकारका विषय करने वाला ज्ञान संशय - संदेह कहा जाता है। संदेह जिसमें न हो उसको असंदिग्ध कहते हैं । तात्पर्य यह है कि-सकल संशय आदि दोष-रहित वचन वाला होना। इस रीति से वचनसम्पदा का निरूपण किया है ॥ सू० ४ ॥ समापन (१) आ यवचनता (२) मधुरवचनता (३) अनिश्रितवचनता (४) असंदिग्धवचनता सेवा शत या२ प्रधा२नी वयनसम्५। छे (१) आदेयवचनताજેનુ વચન શ્રદ્ધાયુકત હોવાથી સમસ્ત મનુષ્યોને ગ્રહણ કરવાગ્ય હોય તે આદેયવચન
वाय छ, मेवा यj (२) मधरवचनता-भलता तथा माधुर्य युटत क्यनवास હોવું તાત્પર્ય એ છે કે–સમસ્ત મનુષ્યને સાભળવામાં આનદ ઉત્પન્ન કરવાવાળા માધુર્ય ગભીરતા આદિ ગુણયુકત વચનમાળા મધુરવચનની કહેવાય છે એવા હોવું. (३) अनिश्रितवचनता- राग द्वेष२हित सवसाधारना हित२४ पक्षपात २डित पयनवाडा (४) असंदिग्धवचनता-साध तथा मा प्रमाण नहीवाथी भने: પ્રકારના વિષય કરવાવાળું જ્ઞાન સ શય–સ દેહ કહેવાય છે એ સદેહ જેમાં ન હોય તે . અસ દિગ્ધ કહેવાય, તાત્પર્ય એ છે કે સકલ સ શય આદિ દેષ-રહિત વચનવાળા હોવુ એવી રીતે વચનસંખ્યદાનું નિરૂપણ કર્યું છે. (સુ) ૪).