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________________ थे । हजारी जी सब के समक्ष भामाशाह के माता के हाथ में सुराजी का सर जो कि ताजे खूनो से लथ पथ था, देते हुए बोले तूं दानवीर की माता है और तेरे सामने दुनियाँ में अपने आपको अकेला दानवीर समझने वाला तेरा लड़का भामाशाह भी अपने बन्धुवर्गों के साथ मौजूद ही है, फिर देर किस बात की। तेरे आग्रह से फिलहाल सूराजी के पास __ मैं पहले पहल गया और तेरी शर्त सुनायीतो सुराजी ने कहा-भला कौन ऐसा गंवार होगा जो आपकी मांग पूरी नहीं करें जब कि एक दान के बदले चौगूना दान मिलने वाला है, सौभाग्य की बात है तो मेरा दान चौगुने शर्तका पहला सिद्ध होगा। यो अर्जू मिन्नत करके अपना सर दान में दे दिया है इतना ही नहीं जिसकी छाया प्रवल शत्रुसैन्य व्यूह में दुश्मन नहीं पा सका उस वंशज का सर है। कुछ अधिक ही इसका बदला मिलना चाहिये । चौगुना देने की तो तूं ने सौगन्द ले ही चुकी है। ला उतना ही ला, देर मत कर। सुराजी के पत्नी को सती होने में इतनी ही देर है कि मैं लौटकर जल्दी जाऊँ और सिर लोटा हूँ । भामाशाह उनकी माता और जनसमुदाय यह सब देखकर चकित हो गया और हाथ जोड़ कर हजारी जी के पाँव में पड़े । दानवीर का गर्व उतर गया । हजारी जी इनको दानवीर के नाटक खेलने वाला कह कर लौट गये और जाकर सुराजी के पत्नी से बोले-लेलो अपने पति का सर । इसे जोड़ दो । धड़ से सर जुड़ गया। जगन हजारीजीने सूराजीकी पत्नी की खूब खूब प्रशंसा की । सरजुड़ते ही सूराजी उठकर खड़े हो गये। जयजय कार हो गया। सूराजी के बाद पीढ़ी दरपीढ़ी में साहजी शिवलाल जी हुए जो महाराणा स्वरूपसिंह जी सा० के दरवार का अमात्य-प्रधान थे, इनके देहान्त पर इनकी पत्नी श्रीमती अमृताबाईजी जिन्दा ही सती हुई जिनकी छतरी उदयपुर में गंगू पर बनी हुई है। अभी भी सभी वर्ग अपने कार्य की पूर्ति के लिये वहाँ जाते हैं और सामायिक की मिन्नत लेते हैं। सा० जी शिवलाल जी के कोई सन्तान न होने से महाराणा स्वरूपसिंह जी सा० उनके नाम पर सा० जी गोपाल लालजीको गोद रख के मेवाड़ का प्रधान बनाना चाहते थे जसा कि सती माता का फरमान था । किन्तु सा० जी गोपाल लालजी पिता श्री सा० जी चम्पा लालजी साहब का एक मात्र पुत्र थे अतः गोददेने से इनकार हो गये पितृभक्ति के बस सा० जी गोपाललाल जी रुक गये । सा० जी गोपाललालजी के एक ही पुत्र सा० श्री मोडीलाल जो सा० थे जिन्होंने सोलह उमरावो की वकालत की और महाराणा फतेहसिंह जी के सलाहकार नियुक्त हुए बाद में महाराणा फतेहसिंह जी ने इन्हे जहाज पुर के हाकिम
SR No.009358
Book TitleVyavaharasutram evam Bruhatkalpsutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, & agam_vyavahara
File Size32 MB
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