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विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० १, एकादि राष्ट्रकूटस्यान्यायवर्णनम्. १२७ . 'अरे ? ज्ञास्यसि अथ यन्ममेदं न दत्से' इत्येवमगुल्यादिनिर्देशेन भीषयनिस्यर्थः, 'तालेमाणे२' . ताडयन्२-कशाचपेटादिभिरिति भावः, 'निद्धणे . करेमाणे२' निर्धनानि कुर्वन्२' "विहरइ' विहरति ।।
___'तए णं से एकाई रहकूडे विजयवद्धमाणस्स खेडस्स' ततः खलु स एकादी राष्ट्रकूटो विजयवर्धमानस्य खेटस्य 'बहूणं' बहूनां 'राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडविय-सेटि-सत्थवाहाणं' राजेश्वर-तलवर-माडम्बिक-कौटुम्बिक-श्रेष्ठि-साथवाहानाम्-त्रत राजेश्वराः युवराजाःतलवरा नगररक्षकाः-'कोटवाल'इति ख्याताः, माडम्बिकाः मडम्बाधिपतयः, मडम्बश्च ग्रामविशेषः, यस्य चतुर्दिक्षु योजनपर्यन्तमन्यः कोऽपि ग्रामो न विद्यते स इत्यर्थः; कौटुम्बिकाम् ग्रामप्रधानाः, तुम लोग मुझे अमुक वस्तु न दोगे तो फिर तुम्हारा भला नहीं' इस प्रकार अंगुली उठाकर उनकी भत्सना करता हुआ, एवं . 'ताडेमाणे२' ताडित करता हुआ-कोडा, थप्पड़, लात और घूसा
आदि से उन पर प्रहार करता हुआ, अन्तमें 'निद्धणे करेमाणे२ विहरइ' उन्हें निधन-दरिद्री बनाता हुआ रहता था।
'तए णं से एकाई रद्वकूडे ' जब वह एकादि मांडलिक राजा, 'विजयवद्धमाणस्स खेडस्स' विजयवर्द्धमान खेट के 'बहूहि राईसर-तलवरमाउंविय-कोडंबिय-सेठि-सत्थवाहाणं अन्नेसिं च बहूणं गामेल्लपुरिसाणं' अनेक युवराज, तलवर-नगररक्षक कोटवाल, मडम्याधिपति, जिसके चारों ओर एक एक योजन तक कोई भी गांव न हो वह मडंब कहा जाता है, उसके जो शासक होते हैं वे मडंबाधिपति कहे जाते हैं; कौटुम्बिक-गांव के मुखिया पुरुष, अथवा मनुष्यों रतो थो, 'तज्जेमाणे २' तत तो थी,-'तुम्मा, या रामा; ने तमे टोडी. મને અમુક વસ્તુ નહિ આપે તે પછી તમારી સલામતી નથી.” એ પ્રમાણે આંગળી
यी ४ीने तेमानी मसना परत थी, मेव 'ताडेमाणे २१ तारित-४२तो थीओयड1, -43, सात, ial आदितना ५२ प्रहार ४२ती थी, छेक्ट 'निदणे करेमाणे २ विहरई' तमान निधन-हरिदी मनावता यो हतो तो.
'तए णं से एक्काई रठिकूडे न्यारे भाव मांडलि रात, 'विजयबदमाणस्स खेडस्स' वियवद्ध भान मेडना 'वहूहिं राइसर-तलवर-मांडविय-कोडंबियसेहि-सत्यवाहाणं अन्नसिं च बहूणं गामेल्लपुरिसाणं' भने यु१२०४, તલવર, નગરરક્ષક, કોટવાલ, માડંબિક-મંડનાધિપતિ, જેની ચારે બાજુ એક જન સુધી કોઈ પણ ગામ ન હોય તેને મંડેબ કહે છે, તેને જે શાસક હોય