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विपाकश्रुते य' करैश्च क्षेत्रादिनिमित्तकैः राज्ञे देयद्रव्यैश्च, 'भरेहि य' भरैश्च राजग्रामकराणामेवाधिक्यैः, 'विद्धीहि य वृद्धिभिश्च कृषीवलादीनां दत्तस्य धान्यस्य द्विगुणादेग्रहणैश्च, 'उक्कोडाहि य' उत्कोटॅश्च-'उकोडा' इति देशीयः शब्दो लार्थकः, 'लाच', घूस' इति भाषायाम् , 'पराभवेहि य पराभवैश्व-तिरस्कारकरणेश्व, 'दिज्जेहि य देयैश्च सकलवस्तुषु करविशेषैश्च, 'भिज्जेहि य' भेधेश्च दण्डद्रव्यैःकश्चिदपराधमाश्रित्य संपूर्णग्रामादिषु ग्राीरित्यर्थः, 'कुंतेहि य' कुन्तैश्च= कुन्तकम्-'एतावद् द्रव्यं त्वया देय'-मित्येवं नियन्त्रणया धनग्रहणैश्च, 'लंछपोसेहि य लन्छपोषैश्च लञ्छाः-चौरविशेषाः, तेषां पोषा:-पोषणानि तैः, 'आलीवणेहि य आदीपनैश्च प्रामादीनां दाहनैश्च, 'पंथकोट्टेहि य पान्थकुट्टैश्च= पान्थानां शस्त्रप्रहारेण धनापहरणैश्च, 'ओवीलेमाणे२' अवपीडयन्२ 'विहम्मेमाणे२' विधर्मयन्२-सदाचारच्युतानि कुर्वन्२, 'तज्जेमाणे२' तर्जयन्२, किसान आदि को दिये गये धान्य आदि को दूने आदि रूप में लेने से, 'उक्कोडाहि य' लांच-घूस आदि से, 'पराभवेहि य' तिरस्कार आदि से, 'दिजेहि य' समस्त चीजों पर कर 'टेक्स' आदि के लेने से, 'भिज्जेहि य' भेद्य-किसीपर कोई अपराध लगाकर समस्त गांव पर दण्ड कर के वसूल किये द्रव्य से, 'कुंतेहि य' 'तुम्हें इतना द्रव्य देना पड़ेगा' इस प्रकार की अनुचित यन्त्रणा से लिये गये द्रव्य से, 'लंछपोसेहि य' ग्राम आदि को लुटवाने के अभिप्राय से किये गये चौरों के पोषण से, 'आलीवणेहि य' ग्राम आदि में अग्नि के लगाने से, 'पंथकोहेहि य' रास्तागीरों को शस्त्रों के प्रहार द्वारा लूटने से, 'ओवीलेमाणे२' सदा दुःखित और 'विहम्मेमाणे२' सदाचार से भ्रष्ट
करता हुआ, 'तज्जेमाणे२ ' तर्जित-करता हुआ- 'देखो, याद रखो, जो 'विद्धीहि य वृद्धि-भेडत माहिने सापेक्ष धान्य माहिन सभा ३५मा सेवायी 'उक्कोडाहि य' ein-३श्वत माहिथी, 'पराभवेहि य' तिसार माहिया, 'दिज्जेहि य' तमाम याने ५२ ४२ (टस) मा सेवाथी, 'भिज्जेहि य' ભેદ્ય-કઈ પણ માણસ પર કેઈપણ પ્રકારને અપરાધ–ગુન્હ મૂકીને સમસ્ત ગામને દંડ शन भगवा व्यथी, 'कुंतेहि य' 'तमारे भाडं द्रव्य-धन भाषj ५' भाव। प्रारना अनुचित भ3 बीधेला द्रव्यथी, 'लंछपोसेहि य' आम माहिन. बुटपाना अभिप्राये 3रे यार डोना पोषयी, 'आलीवणेहि य' गाभभारिन अनि वाथी, 'पंयको?हि य' रास्ताने थीमारना प्रसार २८ इंटपायी, 'ओवीलेमाणे २१ सहा :भित भने-'विहम्मेमाणे २' सायारथी 2