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उत्तराध्ययनसूत्रे वोन्दिरपि व्यवसायवर्जिता निन्दितैवेति तन्निराकरणार्थमाह-" णो ववसायवज्जिया" इति। नो व्यवसायवर्जिता । शास्त्रोक्तार्थे श्रद्धालतया काचित् परलोकव्यवसायनी भवति, परलोकार्थ तत्पत्तिदर्शनादिति भावः।
ननु काचिद् व्यवसायसहिताऽपि अपूर्वकरणविरोधिन्येव दृश्यते, तन्निराकरणार्थमाह-"जो अपुब्धकरणविरोहिणी" इति । 'नो अपूर्वकरणविरोधिनी इति स्त्रीजातावप्यपूर्वकरणसम्भवस्य प्रतिपादितत्वात् । है, कितनीक स्त्रियां ऐसी भी होती हैं कि जो शुद्ध आचारसंपन्न होने पर भी शरीरले अशुद्ध नहीं भी रहती हैं। जिनके वज्रर्षल नाराच संहनन नहीं होता है वे ही अशुद्ध शरीर होती हैं और लोक्ष प्राप्तिके योग्य नहीं होती हैं । लमस्त लियां ऐली ही होती हैं सो बात नहीं है कितनीक शुद्ध शरीरवाली भी होती हैं। "लो व्यवलायवर्जिता" शुद्धशरीर होने पर भी कितनीक नारियां व्यवसायसे वर्जित होती हैं अर्थात् निन्दित होती हैं तो यह भी नियल नहीं बन सकता कारण कि शस्त्रोक्त अर्थमें श्रद्धालु होनेके कारण किनलीक स्त्रियां परलोक सुधारनेमें व्यवसायले विहीन नहीं भी होती हैं। इसलिये उनकी प्रवृत्ति' परलोक के निमित्त देखी जाती हैं। 'नो अपूर्वकरणविरोधिनी' व्यवसाय सहित होने पर भी कितनीक स्त्रियां ऐसी भी होती हैं जो अपूर्वकरणकी विरोधिनी होती हैं तो यह बात भी एकान्ततः मान्य नहीं हो सकती; कारण कि कितनीक स्त्रियां ऐसी ली तो होती है जो अपूर्वकरणकी विरोधिनी नहीं भी होती हैं। क्यों कि स्त्री जातिमें भी अपूर्वकरणका નથી કેટલીક સ્ત્રી એવી પડ્યું હોય છે કે, જે શુદ્ધ આચાર સંપન્ન હોવા છતાં પણ શરીરથી અશુદ્ધ રહેતી નથી. જેનુ વજાઉંભ નારા સંહનન હોતું નથી એજ અશુદ્ધ શરીરવાળી હોય છે. અને મોક્ષ પ્રાપ્તિના ચગ્ય હતી નથી. બધી સ્ત્રીઓ આવી હોય છે એવી વાત નથી. કેટલીક સ્ત્રીએ શુદ્ધ शरीरवाणी ५ हाय छे. " नो व्ययसायवर्जिता" शुद्ध शरी२ डापा छता પણ કેટલીક સ્ત્રી વ્યવસાયથી વજીત હોય છે. અર્થાત્ નિદિત હોય છે. તો આ પણ નિયમ નથી બની શકતે. કારણ કે, શાક્ત અર્થમાં શ્રદ્ધાળુ હોવાના કારણથી કેટલીક સ્ત્રી પરલોક સુધારવામાં વ્યવસાયથી વિહીન બની नथी. भाजाणे मेमनी प्रवृत्ति पसीना निमित्त माटेनी नपामा भाव 2. "नो अपर्व करणविरोधिनी " व्यवसायी डावा छतां यशु टी स्त्रीया मेवा પણ હોય છે, જે અપૂર્વ કરણની વિધિની નથી હોતી. તે આ વાત પણ એકાનતતઃ માન્ય નથી થઈ શકતી કારણ કે, કેટલીક સ્ત્રીઓ એવી પણ હોય