________________
૭૨૨
प्रियदर्शिनी टीका अ० ३६ स्त्री मोक्षनिरूपणम्
ण उपसन्तमोहा' इति । 'नो न उपशान्त मोहा ' इति । काचिदुपशान्तमोहाsपि सम्भवति, तथा दर्शनादिति भावः ।
उपशान्तमोहाऽपि या खल्वशुद्धाचारा गर्हिता, सा न भवति निर्वाणयोग्येत्यत आह:-" णो ण सुद्धाचारा" इति । 'नो न शुद्धाचारा ' इति । काचित् शुद्धाचाराऽपि भवति, अतीचारवर्जनेन श्रद्धाचारदर्शनादिति भावः ।
शुद्धाचाराऽपि काचिदशुद्धबोन्दि र्न निर्माणाधिकारिणीत्यत आह" णो अमुद्धबोंदी " इति । ' नो अशुद्धबोन्दि: ' इति । या वज्रर्षभनाराच संहनन रहिता सा अशुद्धबोन्दि:- अशुद्धशरीरा सा न भवति मोक्षयोग्या सर्वेव तथाविधा न भवति इत्यर्थः । काचित् शुद्धशरीराऽपि भवतीति भावः । शुद्धरहती है - अतः ऐसी स्त्रीयां निर्वाणयोग्य नहीं मानी गई हैं सो इस बाधाकी निवृत्ति के लिये सूनकार कहते हैं कि ये विवक्षित स्त्रियां अनि क्रूरमतिवाली होने पर भी उपशांत मोहवाली हैं । इनकी रतिलालतारूप मोहपरिणति उपशान्त हो चुकी है । "नो न शुद्धाचारा" कितनीक स्त्रियां ऐसी भी होती हैं : जो उपशांत मोह परिणति विशिष्ट होने पर भी अशुद्ध आचारवाली होती है, परन्तु जिन्हें मुक्ति प्राप्त करनी है वे शुद्ध आचार विशिष्ट नहीं होती हैं यह बात नहीं है 'अपि तु शुद्धाचार विशिष्ट ही होती हैं । क्यों कि ये अपने आचारमें दोषोंको नहीं लगने देती हैं तथा लगने पर उनकी शुद्धि करती हैं । "नो अशुद्ध शरीराः" शुद्धाचार विशिष्ट होने पर भी कितनीक स्त्रियां शरीर से अशुद्ध रहा करती हैं अतः वे निर्वाणप्रातिकी अधिकारिणी नहीं होती है सो इस शंका समाधान निमित्त सूत्रकार कहते हैं कि यह एकान्त नियम नहीं સ્ત્રીયાને નિર્વાણુ ચેાગ્ય માનવામાં આવેલ નથી. તા આ બધાનાં નિવૃત્તિના માટે સૂત્રકાર કહે છે કે, એ નિવિક્ષિત સ્ત્રીચામાં અતિક્રૂરમતિવાળી હોવા છતાં પણ ઉપશાંત માહવાળી છે એમની રતિલાલસારૂપ મેહરિતિ ઉપશાંત થઇ युल छे, "नो न शुद्धाचारा" डेंटली स्त्रियेो भेवी पशु होय छे हैं, ? Guia માહ રિતિ હાવા છતાં પણ અશુદ્ધ આચારવાળી હોય છે. પરંતુ જેને મુક્તિ પ્રાપ્ત કરવી છે તે શુદ્ધ આચારવાળી નથી હોતી એવી વાત નથી. પરંતુ શુદ્ધ આચારથી વિશિષ્ટ જ હાય છે. કેમ કે એ પેાતાના આચારમાં होषोने लागवा हेती नथी तथा सागपाथी पशु सेनी शुद्धि उरे छे. " नो अशुद्ध शरीरा ” शुद्ध मायार विशिष्ट होग छतां पशु डेंटली स्त्रीये। शरीरथी અશુદ્ધ રહ્યા કરે છે. આથી તે નિન્દ્ગણુ પ્રાપ્તિની અધિકારિણુિ થતી નથી તા આ શકાના સમાધાન નિમિત્ત સૂત્રકાર કહે છે કે, આવા એકાન્ત નિયમ