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________________ प्रियदर्शिनीटीका म० १३ चित्र-संभूतवरितवर्णनम् ७८३ टीका-'अह पि' इत्यादि। हे साधो हे मुने ! इह-सासारिक पदार्यानित्यत्वविपये यदेतत्पूर्वोक्त वाक्य यथा येन प्रकारेण व मे मम सोधयसि कथयसि, तथैवाहमपि तत्सर्व जानामि । यदि जानासि तदा कथमासक्तोऽसि ? इति चेच्चिनमुनियादत आह-'भोगा इमे' इत्यादि-इमे शब्दादयो भोगाः सङ्ककरा:-धर्मक्रिया प्रतिपन्धका भवन्ति । हे आर्य! ये भोगा जस्मादृशेगुरुकर्मभिर्दुर्जयाः जेतुमशक्याः भवन्ति । अतोऽहमेतत्परित्यागेऽसमर्थोऽस्मीति ॥ २७॥ इस प्रकार मुनिराजके वचन सुनकर चक्रवर्ती कहते हैं-'अपि'इत्यादि। अन्वयार्थ (साहू-सामो) मुनिराज ! (जहा इह तुम मे साधयसियया इह बमे साधयसि) जिस तरह आप सासारिक पदार्थों की अनित्य ताके विषय मे मुझे समझा रहे हैं उस तरह (अपि जाणामि-अहमपि जानामि) में भी जानता हूँ कि (इमे-इमे) ये (भोगा-भोगा) शब्दादिक भोग(सगकरा वति-सङ्गकरा भवन्ति) धर्मक्रियाके प्रतिवन्धक है। परन्तु (अज्जो-आर्य) हे आर्य। (ये भोगाः) जो भोग होते है वे ( अम्हासि सेटिं-दुज्जया-अस्मादृशैः दुर्जयाः) हमारे जैसोंसे दुर्जय हुआ करते है, अतः मैं उनके छोडनेमे असमर्थ है। _ . भावार्थ-चक्रवर्तीने इस गाथा द्वारा अपनी वास्तविक परिस्थिति मुनिराजके सामने स्पष्ट कर रख दी है, उससे यह ज्ञात हो जाता है कि वह जैसा कह रहा है कि मैं भी इन भोगोंको धर्मक्रियाके प्रतिवधक जान रहा हू-परन्तु चारित्रमोहनीयके उदयमे ये हमारे जैसे जीवों द्वारा આ પ્રકારના મુનિરાજના વચન સાંભળીને ચક્રવતી કહે છે– "अहपित्यादि मन्याथ-साहू-साधो भुनिन! जहा इह तुम मे साधयसि-यथा इह त्व मे साधयसि म मा सारि पहायानी मनित्यताना विषयमा भने समतवा २ छ। २४ शत अहपि जाणामि-अहमपि जानामि हु पY MY छु है, इमे-इमे मा Awell भोगा-भोगा मग सगकरा हवति-सङ्गकरा भवन्ति धमडियामा अपराध ४२नार छ ५२तु अज्जा-आर्य ! हे माय ! भोगा रे सोसाय छ ते अम्हासिसेहिं दुच्चया-अस्माद्रशे दुस्त्यजा समा। पाथी છેડાવા અશકય હોય છે આથી હું તેને છોડવામાં અસમર્થ છુ. ભાવાર્થ-ચકવર્તીએ આ ગાથા દ્વારા પિતાની વાસ્તવિક પરિસ્થીતિ મુનિરાજની સામે સ્પષ્ટ કરીને રાખી દીધી ચક્રવર્તી એવું કહી રહેલ છે કે, હુ આ ભેગોને ધર્મ કિયાના પ્રતિબ ધક જાણું છું પરંતુ ચારિત્ર મોહનીયના
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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